फ्रांस इन दिनों बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों की चपेट में है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की नीतियों और हाल ही में नए प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू की नियुक्ति को लेकर देशभर में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। इस आंदोलन को ‘ब्लॉक एवरीथिंग’ नाम दिया गया है। देखते ही देखते यह विरोध इतना उग्र हो गया कि राजधानी पेरिस समेत कई बड़े शहरों में यातायात ठप हो गया और जनजीवन प्रभावित होने लगा।
विरोध प्रदर्शनों के चलते सड़कें जाम हो गईं, पब्लिक ट्रांसपोर्ट से लेकर अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों तक कामकाज बाधित हो गया। पुलिस ने हालात को काबू करने के लिए अब तक 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच कई जगह झड़पें हुईं, यहां तक कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस का भी इस्तेमाल करना पड़ा।
‘ब्लॉक एवरीथिंग’ आंदोलन की अगुवाई विपक्षी लेफ्ट ग्रुप कर रहा है, जो लंबे समय से मैक्रों की नीतियों का आलोचक रहा है। यह विरोध नई सरकार के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं माना जा रहा। खासकर 39 वर्षीय लेकोर्नू, जिन्हें कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है, उनकी साख इस आंदोलन से सीधे जुड़ गई है।
दरअसल, मैक्रों ने लेकोर्नू को प्रधानमंत्री इसलिए बनाया क्योंकि उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री बायरू संसद में विश्वास मत हार गए थे और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। ऐसे में मैक्रों और लेकोर्नू के लिए यह समय बेहद कठिन दौर साबित हो रहा है। सरकार को जहां स्थिरता की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, वहीं सड़क पर जनता का गुस्सा लगातार बढ़ रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम ने साफ कर दिया है कि फ्रांस की राजनीति और प्रशासन के लिए आने वाले दिन बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं।